राजर्षी छत्रपति शाहूजी महाराज
♦ आरक्षण के पितामह, बहुजनों के उद्धारक छत्रपति शाहूजी महाराज के 97वें स्मृति दिवस पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन!
राजर्षी छत्रपति शाहूजी महाराज के जीवन पर राष्ट्रपति जोतिराव फुले का काफी प्रभाव था. छत्रपति शाहूजी महाराज बॉम्बे स्टेट के निकट कोल्हापुर संस्थान के शूद्र (कुर्मी) जाति के राजा थे. शूद्र-अतिशूद्र के लिए शिक्षा के दरवाजे खोलकर मुक्ति की राह दिखाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था.
सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई साहिबा था. शाहूजी के जन्म का नाम यशवंतराव था. आबासाहब, यशवंतराव के दादा थे. चौथे शिवाजी का अंत होने के बाद शिवाजी महाराज की पत्नी महारानी आनंदी बाई साहिबा ने 1884 में यशवंत राव को गोद ले लिया था. इसके बाद यशवंतराव का नाम शाहू छत्रपति रखा गया था. इन्हें कोल्हापुर संस्थान का वारिस भी बना दिया गया था. शाहूजी महाराज की शिक्षा राजकोट में स्थापित राजकुमार कॉलेज में हुई.
राजकोट की शिक्षा समाप्त करके शाहूजी को आगे की शिक्षा पाने के लिए 1890 से 1894 तक धारबाड़ में रखा गया. शाहूजी महाराज ने अंग्रेजी, इतिहास और राज्य कारोबार चलाने की शिक्षा ग्रहण की. अप्रैल 1897 में राजा शाहूजी का विवाह खानविलकर की कन्या श्रीमंत लक्ष्मीबाई से संपन्न हुआ. विवाह के समय लक्ष्मीबाई की उम्र महज 11 वर्ष की ही थी. जब छत्रपति शाहूजी महाराज की आयु 20 वर्ष थी तब इन्होंने करवीर (कोल्हापुर) संस्थान के अधिकार ग्रहण करके सत्ता की बागड़ोर अपने हाथ में ले ली तथा शासन करने लगे.
1894 में शाहूजी महाराज का जब राज्यभिषेक समारोह हुआ तो उनके शूद्र होने की वजह से ब्राह्मणों ने पैर के अँगूठे से उनका राजतिलक किया. इससे उन्हें बहुत पीड़ा हुई. आमतौर पर सभी राजाओं की छवि जनता की आमदनी को करों के माध्यम से हड़पने एवं जबरन वसूली की थी, लेकिन छत्रपति शाहू ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने सबसे से बड़ा काम राज व्यवस्था में परिवर्तन करके किया. उनका मानना था कि संस्थान की वृद्धि में उन्नति के लिए प्रशासन में हर जाति के लोगों की सहभागिता जरूरी है. उस समय उनके प्रशासन में ज्यादातर ब्राह्मण जाति के लोग ही थे, जबकि बहुजन समाज के सिर्फ 11 अधिकारी थे. ब्राह्मणों ने एक चाल के तहत बहुजन समाज को शिक्षा से दूर रखा था, ताकि पढ़-लिखकर ये सरकारों में शामिल न हो सकें.
शाहूजी महाराज इस बात से चिंतित रहते थे, उन्होंने प्रशासन में ब्राह्मणों के इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए तथा बहुजन समाज की भागीदारी के लिए आरक्षण कानून बनाया. इस क्रान्तिकारी कानून के अंतर्गत बहुजन समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी. यह देश में आरक्षण की पहली व्यवस्था थी. क्योंकि उस समय बहुजन समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे. उन्हें तिरस्कार की जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था.
शाहूजी के जीवन पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले का काफी प्रम्भाव था. फुले के देहांत के बाद महाराष्ट्र में चले सत्यशोधक समाज आन्दोलन का कारवाँ चलाने वाला कोई नेता नहीं था. 1910 से 1911 तक शाहूजी महाराज ने इस सत्यशोधक समाज आन्दोलन का अध्ययन किया. 1911 में राजा शाहूजी महाराज ने अपने संस्थान में सत्य शोधक समाज की स्थापना की. कोल्हापुर संस्थान में शाहू महाराज ने जगह-जगह गाँव-गाँव में सत्यशोधक समाज की शाखाएँ स्थापित की.
18 अप्रैल 1901 में मराठा स्टूडेंट्स इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्थान की स्थापना की और 47 हजार रूपये खर्च करके इमारत बनवाई. 1904 में जैन हॉस्टल, 1906 में मॉमेडन हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य मिल क्लार्क हॉस्टल जैसी संस्था का निर्माण करके शाहूजी महाराज ने शिक्षा फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया जो मील का पत्थर साबित हुआ. अज्ञानी और पिछड़े बहुजन समाज को ज्ञानी, संपन्न एवं उन्नत बनाने हेतु छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने जीवन का एक-एक क्षण समर्पित कर दिया. अंततः 06 मई 1922 को केवल 48 वर्ष की आयु में बहुजन समाज के हितकारी राजा छत्रपति शाहूजी महाराज का परिनिर्वाण हो गया. आज छत्रपति शाहूजी महाराज के जीवन संघर्ष से मूलनिवासी बहुजन समाज को प्रेरणा लेकर निश्चित रूप से समाज में काम करना चाहिए और उनके क्रांतिकारी विचारों को जन-जनतक पहुँचाने का काम करना चाहिए. आरक्षण के पितामह, बहुजनों के उद्धारक छत्रपति शाहूजी महाराज के 97वें स्मृति दिवस पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन!
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