शुक्रवार, 10 मई 2019

न्यायपालिका में अन्याय : राधेश्याम (भारत मुक्ति मोर्चा, जागृति जत्था, चन्दौली उ.प्र.)

न्यायपालिका में अन्याय 
खुद के कटघरे में खड़ी न्यायपालिका

राधेश्याम (भारत मुक्ति मोर्चा, जागृति जत्था, चन्दौली उ.प्र.) 
https://www.mulnivasinayak.com/hindi/

दिनांक 7 मई 2019 को महुअर कला जिला चन्दौली में एक कार्यक्रम को आयोजित करते हुए भारत मुक्ति मोर्चा जागृति जत्था के कार्यकर्ता बामसेफ के पूर्णकालिन कार्यकर्ता व दैनिक मूलनिवासी नायक के संपादक राजकुमार के पिताजी राधेश्याम, पपौरा, स्व.बाबूलाल लोहार. खड़ान, नरेन्द्र कुमार टेढ़िया पर, नामवर कैलावर, रामबली सत्यार्थी, महुआरी, अमित कुमार महुअर कलॉ..अरबजीत महुअर कला, राजेन्द्र यादव सहित हजारों लोग मौजूद रहे.....


बामसेफ के पूर्णकालिन प्रचारक व दैनिक मूलनिवासी नायक संपादक राजकुमार के माता पावर्ती देवी और पिता राधेश्याम......

अगर न्याय करने वाली न्यायपालिका में ही अन्याय शुरू हो जाय तो इससे अंदाजा लगा लेना चाहिए कि देश में अनर्थ होने वाला है. क्योंकि आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट न्याय की आखिरी मंजिल है. जिसे यहाँ इंसाफ नहीं मिला, उसे फिर कभी भी इंसाफ नहीं मिल सकता है. अभी तक जो यह धारणा रही है कि जिसे कहीं न्याय नहीं मिलता उसे कोर्ट में न्याय मिलता है, लेकिन जब न्यायपालिका खुद के कटघरे में खड़ी हो चुकी है तो निश्चित तौर ऐसा कहा जा सकता है कि न्यायपालिका खतरे है.



देश के इतिहास में जो अब तक नहीं हुआ वो 12 जनवरी को हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चार न्यायधीशों ने बकायदा प्रेस कांफ्रेस कर सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया था. जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद पूरे देश मे हडकंप मच गया था. तरह-तरह के सवाल उठने लगे थे कि ऐसा नही होना चाहिए था, वैसा नही होना चाहिए था. सवाल यह है कि क्या न्यायधीश को अपनी बात रखने का हक नहीं हैं? जब विकसित देशों में न्यायधीश प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं तो भारत के न्यायधीश क्यों नहीं कर सकते? जाहिर है जो अब तक नहीं हुआ यदि वो अब हो रहा है तो इसके पीछे बड़ी वजह होगी.  जिस न्यायपालिका के कामकाज पर सवाल उठने पर बहुत से लोगों को खतरा दिख रहा है. क्या वो न्यायपालिका की कार्यप्रणाली से संतुष्ट हैं? देश में अनेकों उदाहरण मौजूद है जो कोर्ट की कार्यप्रणाली से आजिज आ चुके हैं. अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का सुसाइड नोट इसका जीता-जागता उदाहरण है. दूर जाने की जरूरत नहीं, चारों न्यायाधीशों ने जज लोया मामले पर भी अपनी आवाज उठायी थी. 


आज एक बार फिर यह बात सामने आयी है कि न्यायालय में जमकर हेराफेरी चल रही है. मामला विवादित बिल्डर ग्रुप आम्रपाली के 6 सप्लायरों से जुड़ा है. दरअसल, शीर्ष अदालत ने आम्रपाली के सप्लायर्स को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त फॉरेंसिंक ऑडिटर पवन अग्रवाल के समक्ष हाजिर होने के लिए कहा था, लेकिन उन्हें बदल दिया गया. जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने ‘आदेश’ के बदले जाने पर हैरानी जताई और कहा कि इस घटना से यह बात पुष्ट होती है कि न्यायापालिक में घुसपैठ करके कॉपोरेट घरानों ने कोर्ट-स्टाफ को प्रभावित किया है. जस्टिस मिश्रा की बेंच ने पहले ही उन आरोपों की जाँच के आदेश दिए हैं, जिनमें कहा गया था कि ‘बिचौलिए और फिक्सर’ न्यायपालिका की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. 

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बामसेफ के पूर्णकालिन प्रचारक व दैनिक मूलनिवासी नायक संपादक राजकुमार की माता पावर्ती देवी 

बुधवार को जस्टिस मिश्रा ने पाया कि उनके द्वारा दिए गए आदेश को भी ‘बदल’ दिया गया है. न्यायालय ने कहा कि इससे पहले भी कोर्ट के आदेशों को बदला जा चुका है. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हैरान करने वाली बात यह है कि यह बेहद शरारती तरीके से किया गया है जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. यहाँ (सुप्रीम कोर्ट) में क्या हो रहा है? वे हमारी ऑर्डर शीट में हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं. इस तरह से यदि देखा जाए तो निश्चित रूप से 12 जनवरी 2018 की यह घटना न्यायपालिका के इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाली घटना है. देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि न्यायाधीश मीडिया के पास आए और अपनी बात कहें. 

अभी तक तो यही धारणा रही है कि जिसे कहीं न्याय नहीं मिलता उसे कोर्ट में न्याय मिलता है, लेकिन यदि ऐसी घटना होती है तो निश्चित तौर ऐसा कहा जा सकता है कि न्यायपालिका खतरे है. क्योंकि ही इसके पीछे कोई छोटी-मोटी नहीं, बल्कि बहुत बड़ी वजह होगी. सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जस्टिस बाहर आते हैं और प्रेस के सामने कहते हैं कि ‘इस देश में बहुत से बुद्धिमान लोग हैं जो विवेकपूर्ण बातें करते रहते हैं. हम नहीं चाहते कि ये बुद्धिमान लोग 20 साल बाद ये कहें कि जस्टिस चेलामेश्वर, गोगोई, लोकुर और कुरियन जोसेफ ने अपनी आत्मा बेच दी और संविधान के हिसाब से सही कदम नहीं उठाया’ जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि हमारे सारे प्रयास फेल हो गए. हम सभी ने समझाने का प्रयास किया कि जब तक इस संस्थान को बचाया नहीं जाएगा, भारत में लोकतंत्र को नहीं बचाया जा सकता है. 

यह तो सभी जानते हैं कि प्रेस कांफ्रेंस के बाद जिस तरह देश में भूचाल आया वह देखने लायक था. सरकार से लेकर न्यायपालिका में हडकंप मच गया था. उस दौरान सभी अपने-अपने हिसाब से स्थिति का आंकलन कर रहे थे. जस्टिस चेलामेश्वर ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि उन्होंने चीफ जस्टिस को सारे हालात से अवगत कराया, लेकिन उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की. उन्होंने वह पत्र भी सार्वजनिक किया जो चीफ जस्टिस को भेजा गया था, लेकिन दो महीने पहले चीफ जस्टिस को लिखे पत्र पर भी आधी अधूरी ही चर्चा हुई. हालांकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस मामले में पहल की और 16 जजों से 13 जनवरी से लेकर 14 जनवरी रात तक मुलाकात की. बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कहना है कि राजनीतिक दल इससे दूर रहें और मीडिया ने भी कुछ अटकलें फैलाईं जो उचित नहीं थी. अटार्नी जनरल ने भी बताया कि चाय मीटिंग में सभी जज मौजूद थे और मामला सुलझ गया. अच्छी बात है, लेकिन बात केस की सुनवाई के लिए बेंच के गठन और मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर को लेकर हुई थी, इस पर क्या बात हुई, कोई ठोस जानकारी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा कोर्ट प्रशासन से लेकर चीफ जस्टिस के कामकाज पर सवाल खड़ा करने से संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है. आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट न्याय की आखिरी मंजिल है. जिसे वहाँ इंसाफ नहीं मिला, उसे फिर कभी नहीं मिलेगा. जाहिर है इतने जिम्मेदार संवैधानिक पीठ पर सवाल उठना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है. यदि उसी समय इस पर ध्यान दिया गया होता तो शायद आज यह नौबत न आती कि खुद मौजूदा चार जजों को मीडिया के सामने आना पड़ता और साथी जज लोया के लिए बोलना पड़ता. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट न्याय की वह आखिरी मंजिल है. जिसे वहाँ इंसाफ नहीं मिला, उसे फिर कभी कहीं भी इंसाफ नहीं मिल सकता है. जाहिर है इतने जिम्मेदार संवैधानिक पीठ पर सवाल उठना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है.कुल मिलकार यही साबित हो रहा है कि विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया में हेराफेरी के बाद अब न्यायपालिका में भी हेराफेरी शुरू हो गयी है. इस हेराफेरी ने देश की न्यायपालिका खतरे में डाल दिया है. 

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