ओबीसी के लिए बीजेपी हानिकारक है
राधेश्याम (भारत मुक्ति मोर्चा, जागृति जत्था, चन्दौली उ.प्र.)
https://www.mulnivasinayak.com/hindi/
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दैनिक मूलनिवासी नायक कई बार इस बात से आगाह कर चुका है कि बीजेपी, कांग्रेस न केवल ओबीसी के लिए, बल्कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के लिए भी हानिकारक है. कांग्रेस-बीजेपी ने कभी एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी को अधिकार देने के लिए कानून नहीं बनाया है, बल्कि अधिकार को खत्म करने के लिए बहुत सारे कानून बनाए हैं. यह हर बार हुआ है कि जब-जब सरकार ने ओबीसी आरक्षण पर कोई फैसला लिया है तब-तब ओबीसी के लिए खतरनाक ही साबित हुआ है. चाहे आरक्षण का मामला हो या क्रीमीलेयर की परिभाषा बदलने की. चाहे जाति आधारित जनगणना की हो या ओबीसी को जबरन हिन्दू बनाने की. हर बार सरकार ने ओबीसी के साथ धोखेबाजी ही किया है.
अब मोदी मनुवादी सरकार एक और नया फरमान जारी करने की तैयारी कर रही है. सरकार अब ओबीसी आरक्षण में 1900 जातियों को अलग से 10 प्रतिशत कोटा देने की कवायद कर रही है. वैसे सरकार का यह नया फैसला भी ओबीसी के लिए हानिकारक ही सिद्ध होने वाला है. ऐसा पूर्वानुमान के आधार पर कहा जा सकता है. क्योंकि ओबीसी आरक्षण का इतिहास इस बात का गवाह है कि आज तक सरकार ने ओबीसी के लिए जब भी कोई कदम उठाया है तो वह ओबीसी के विरोध में ही उठाया है. इसलिए पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह नया फरमान भी ओबीसी के साथ धोखेबाजी ही साबित होने वाली है.
एक और बात का याद दिला दें हालांकि इसका जिक्र नीचे करूंगा, लेकिन इतना बता दूँ कि हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर किया गया है. याचिका में कहा गया है कि ओबीसी में आने वाली अहिर जाति को ओबीसी से निकालकर सामान्य वर्ग में शामिल किया जाय. हालांकि इस पर हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से अपनी राय व्यक्त करने के लिए जवाबतलब किया था. इस बात को लेकर एक आशंका है कि कही ऐसा तो नहीं है कि सरकार ओबीसी आरक्षण में अहिर सहित 1900 जातियों को सामान्य कोटे में शामिल करके उनके उनको अलग से 10 प्रतिशत कोटा देने की तैयारी कर रही है?
खैर एक नजर सरकार के इस फरमान पर डालते हैं कि सरकार क्या नया फरमान जारी करने जा रही है? ओबीसी रिजर्वेशन ठीक से लागू हुआ या नहीं और इसका फायदा सभी जातियों तक पहुँच रहा है या नहीं? जैसे सवालों का पता लगाने के लिए बनाए गए कमीशन ऑफ एग्जामिन सब-कैटेगोराइजेशन ऑफ ओबीसी जल्द ही ओबीसी रिजर्वेशन के भीतर कुछ विशेष जातियों के लिए 8-10 प्रतिशत अलग से आरक्षण की मांग कर सकता है. कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की 1900 ऐसी जातियाँ हैं, जिन तक आरक्षण का फायदा नहीं मिला है.
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कमीशन ने पाया कि केंद्र की सूची में मौजूद 2,633 ओबीसी जातियों में से 1,900 ऐसी हैं, जिन्हें 27 प्रतिशत रिजर्वेशन के बावजूद उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है. इन जातियों से ताल्लुक रखने वाले 3 प्रतिशत से भी कम लोग ओबीसी रिजर्वेशन के जरिए मिली नौकरियों में मौजूद हैं. 2 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में कमीशन गठित किया था. इस कमीशन को कई बार एक्सटेंशन मिल चुका है और 31 मई को इसका कार्यकाल खत्म हो रहा है. एक अंग्रेजी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि कमीशन ने रिपोर्ट पूरी कर ली है और ओबीसी रिजर्वेशन में अलग से कोटे की मांग की जाएगी.
कमीशन ऑफ एग्जामिन सब-कैटेगोराइजेशन ऑफ ओबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछड़े वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में घोर असमानता है. ओबीसी वर्ग की सिर्फ 25 फीसदी जातियाँ ही 97 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उठा ले जा रही हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि ओबीसी की 983 जातियों का जहाँ आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला है, वहीं 994 जातियाँ आरक्षण का सिर्फ 2.68 प्रतिशत का ही लाभ ले पा रही हैं. यानी करीब 1900 जातियाँ ऐसी हैं जिन्हें 3 प्रतिशत भी फायदा नहीं पहुँचा है.
बता दें कि कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, ओबीसी आरक्षण के तहत जिन जातियों को लाभ मिला है उनमें यादव, कुर्मी, जाट (राजस्थान का जाट समुदाय सिर्फ भरतपुर और धौलपुर जिले के जाट समुदाय को ही केंद्रीय ओबीसी लिस्ट में जगह दी गयी है), सैनी, थेवार, एझावा और वोक्कालिगा जैसी जातियाँ शामिल हैं. मौजूदा रिपोर्ट तैयार करने करने के लिए कमीशन ने ओबीसी कोटा के तहत पिछले पाँच सालों के दौरान दी गयीं 1.3 लाख केंद्रीय नौकरियों का अध्ययन किया है. इसके साथ ही आयोग ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी, आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम और एम्स जैसे संस्थानों में हुए एडमिशन का भी अध्ययन किया. रिपोर्ट में जो एक और बात निकलकर सामने आयी है, वह यह है कि जिन राज्यों में ओबीसी की जनसंख्या के हिसाब से ज्यादा कोटा दिया गया है, उन्हीं राज्यों में रिजर्वेशन का लाभ जरुरी लोगों तक नहीं पहुँच पा रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक कमीशन ऑफ एग्जामिन सब-कैटेगोराइजेशन ऑफ ओबीसी का गठन अक्तूबर, 2017 में किया गया था. इस कमीशन का कार्यकाल फिलहाल 31 मई, 2019 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. दिल्ली हाइकोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस जी रोहिणी इसकी अध्यक्ष हैं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट सभी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी और राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को भेज दी है. यह भी पता चला है कि साल 2017 में सत्ता में आते ही योगी आदित्यनाथ की सरकार ने चार सदस्यीय सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था. जिसका काम था पिछड़ों में भी ऐसी जातियों की पहचान करना जिन्हें ओबीसी रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिल रहा है. जस्टिस राघवेंद्र कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में ओबीसी को 79 उपजातियों में बांटा है. योगी सरकार ने पिछड़ों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन और नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी के अध्ययन के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमिटी बनाई थी. इसमें बीएचयू के प्रोफेसर भूपेंद्र विक्रम सिंह, रिटायर्ड आईएएस जेपी विश्वकर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक राजभर शामिल थे. विश्वकर्मा 2002 में राजनाथ सरकार में बनी सामाजिक न्याय अधिकारिता समिति में भी सचिव थे.
कमेटी ने 27 फीसदी पिछड़ा आरक्षण को तीन हिस्सों-पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा में बांटने की सिफारिश की है. पहली श्रेणी को 7 प्रतिशत, दूसरी श्रेणी को 11 प्रतिशत और तीसरी श्रेणी को 9 प्रतिशत आरक्षण वर्ग में रखा जाना प्रस्तावित है. इसी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यादवों और कुर्मियों को 7 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यादव और कुर्मी न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से बल्कि, आर्थिक और राजनीतिक रसूखवाले हैं. यादव समाजवादी पार्टी का कोर वोटर हैं, जबकि कुर्मी बीजेपी समर्थित अपना दल का कोर वोटर है. इस रिपोर्ट में समिति ने सबसे ज्यादा आरक्षण की मांग अति पिछड़ा वर्ग के लिए की है, जो 11 फीसदी है. कमेटी ने लोध, कुशवाहा, तेली जैसी जातियों को इस वर्ग में रखा है. 400 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अति पिछड़ा जाति के लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं उनकी जनसंख्या से आधी हैं. इस जाति की श्रेणी में आने वाले कुछ खास वर्ग हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा नौकरियाँ मिल रही हैं.
अब ओबीसी के प्रति बीजेपी सरकार की क्या रवैया है, इस पर गौर करते हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में अहिर जाति को पिछड़े वर्ग से निकालकर सामान्य वर्ग में शामिल करने की माँग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर केन्द्र व राज्य सरकार से चार हफ्ते में जवाब माँगा था, लेकिन यूपी सरकार और केन्द्र सरकार ने अभी तक कोई भी जवाब नहीं किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति पी.के.एस.बघेल तथा न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खण्डपीठ ने पृथ्वी फाउण्डेशन नामक संस्था की तरफ से दाखिल जनहित याचिका पर दिया था. याची का कहना है कि यादव समुदाय का काफी विकास हुआ है. उसका मानना है कि यादव की सामाजिक आर्थिक विकास हो चुका है. ऐसे में इन्हें अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल किया जाना उचित नहीं है. बल्कि आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न हो चुके यादवों को सामान्य वर्ग में रखा जाए. इस पर कोर्ट ने मुद्दा विचारणीय मानते हुए और केन्द्र व राज्य सरकारों से याचिका पर जवाब देने को कहा था.
अब विस्तृत बताते चलें कि ब्राह्मणवादी सरकारों ने ओबीसी के साथ धोखेबाजी का सिलसिला साइमन कमीशन से शुरू किया वो सिलसिला आज भी जारी है. साइमन कमीशन से लेकर मंडल कमीशन तक निरंतर धोखेबाजी पर धोखेबाजी करते आ रही हैं. हालांकि सबसे पहले तो ओबीसी की जाति आधारित गिनती नहीं करके ओबीसी को सारे अधिकारों से पहले ही वंचित कर दिया था. इसके बाद मनुवादियों ने ओबीसी को ओबीसी मानने से इनकार करके फिर उनके साथ धोखेबाजी किया. इसके अलावा मंडल कमीशन के अनुसार 52 प्रतिशत ओबीसी को 52 प्रतिशत आरक्षण न देकर महज 27 प्रतिशत आरक्षण और उनके ऊपर क्रीमीलेयर थोपकर फिर से धोखेबाजी किया.
यह धोखेबाजी यही नहीं रूकी, बल्कि इससे आगे क्रीमीलेयर को हर बार परिभाषित कर उसे और ज्यादा गंभीर बनाते रहे. और तो और मेडिकल कॉलेज से लेकर अन्य विभागों में ओबीसी के मेघावी छात्रों को जाने रोक लगा दिया. इस तरह से ओबीसी के साथ धोखेबाजी पर धोखेबाजी होते आ रही है. मगर जो हाल में ब्राह्मणवादी सरकारें ओबीसी के साथ धोखेबाजी कर रही है यह सबसे ज्यादा खतनाक है. क्योंकि मनुवादी सरकारें ओबीसी की पहचान ही मिटाने का पूरा प्लान बना चुकी हैं. हाईकोर्ट में याचिका दिया गया है कि यादव को ओबीसी से निकाल कर सामान्य वर्ग में शामिल किया जाए. इसके पीछे बताया गया है कि यादव सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न हो चुका है, इसलिए उनको सामान्य वर्ग में लागया जाए.
आपको बता दें कि सरकार ओबीसी के साथ किस तरह से धोखेबाजी कर रही है? इसको इस तरह से समझा जा सकता है. एक अगस्त 2015 को राजस्थान राज्य पिछड़ा आयोग द्वारा बताया गया था कि राजस्थान में ओबीसी कैटेगरी में 81 जातियाँ है, लेकिन आरक्षण का सर्वाधिक फायदा जाट, माली, कुम्हार यादव और गुर्जर सहित सिर्फ पाँच जातियाँ ही उठा रही हैं. इसके लिए उन्होंने बकायदा रिपोर्ट भी जारी किया था. उस रिपोर्ट के अनुसार 2001 से 2012 के बीच यानी 12 सालों में ओबीसी के लिए आरक्षित 70 से 75 फीसदी सरकारी नौकरियों में इन्हीं पाँच जातियों का वर्चस्व रहा है, बाकी 76 जातियों को सिर्फ 20 से 25 फीसदी नौकरियाँ ही मिली हैं.
यानी उनके कहने का मतलब साफ है कि इन पाँच जातियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहतर है, इसलिए इनको अब किसी भी अधिकार की जरूरत नहीं है. इस तरह से ओबीसी के साथ धोखेबाजी की जा रही है. यही नहीं केन्द्र की सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी ने क्रीमीलेयर को परिभाषित करते हुए कहा था कि जिन ओबीसी की आय 10 रू. से ज्यादा है उनको क्रीमीलेयर में रखा जाय. यह क्रीमीलेयर उनके पदो पर भी लागू होगा. सरकार का यह कहना है कि जो ओबीसी ऊँचें पदों पर है उनको आरक्षण का कोई भी लाभ नहीं दिये जाय. इसके अलावा यह भी बताया गया था कि ऊँचें पदों पर रहने वाले ओबीसी के कुछ लोग आरक्षण का लाभ ले रहे हैं और गरीब ओबीसी हैं उनको आरक्षण नहीं मिल रहा है. इस तरह से अमीर ओबीसी को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए.
याचिका में यह भी कहा गया था कि यही रवैया एससी और एसटी में भी है. ऊँचें पदों पर रहने वाले एससी और एससी के लोग आरक्षण आरक्षण ले रहे हैं और गरीबों को आरक्षण नहीं मिल रहा है. इसलिए एससी और एसटी में भी क्रीमीलेयर लागू होना चाहिए. यहाँ यह समझने की जरूरत है कि मनुवादी सरकारें ओबीसी की तरह ही अब एससी और एसटी में भी क्रीमीलेयर लागू करने का पूर्वनियोजित प्लान बना रहे हैं. इसका मतलब है कि मनुवादी सरकारें एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी को हर तरह से अधिकार वंचित करने के लिए नये-नये कानून बना रहे हैं. अगर इसी तरह से चलता रहा तो आने वाले समय में ओबीसी को न केवल उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जायेगा, बल्कि उनको सामान्य वर्ग में डालकर उनकी पहचान भी मिटा दी जायेगी, इसकी शुरूआत हो चुकी है. हाईकोर्ट का फैसला कभी भी आ सकता है. इसलिए ओबीसी को हाथ पर हाथ रखकर बैठने की जरूरत नहीं है, बल्कि ब्राह्मणवादी सरकारों के खिलाफ आंदोलन करने की सख्त जरूरत है.
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