शनिवार, 25 मई 2019

एग्जिट पोल के नतीजों पर गहमागहमी


राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
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‘‘असल में बीजेपी को कुल 169-177 सीट से ज्यादा एक भी सीट नहीं मिलने वाली है. परन्तु, दलाल और मोदी मीडिया देश की जनता को भ्रम में इसलिए रखना चाहती है. क्योंकि इसी भ्रम की आड़ में बीजेपी आसानी से ईवीएम को बदलकर सीटों की संख्या को बढ़ा सके और एग्जिट पोल्स की बातों को सच साबित कर सके ’’

एग्जिट पोल के चौंकाने वाले नतीजों के पीछे कहीं ईवीएम का ‘खेल’ तो नहीं है? दरअसल एग्जिट पोल के नतीजों ने शक को तब जन्म दे दिया, जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से ईवीएम बदलने की खबरें आने लगी. बीएमपी, एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवारों ने अपने-अपने जिलों में ईवीएम बदलने की आशंका जताते हुए धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. अब इन घटनाओं में कितनी सच्चाई है, ये तो जाँच के बाद पता चलेगा, लेकिन सवाल उठता है कि क्या एग्जिट पोल के नतीजों का कनेक्शन ईवीएम से जुड़ी घटनाओं से तो नहीं है?

बताते चलें कि चंदौली, गाजीपुर और मिर्जापुर में ईवीएम को लेकर जिस तरह की खबरें सामने आई हैं, वो बेहद चौंकाने वाली हैं. चंदौली और अन्य दूसरे जिलों में चुनाव खत्म होने के 24 घंटे बाद ईवीएम से भरी गाड़ियों का पाया जाना कोई सोची-समझी कोशिश या फिर लापरवाही, क्या समझा जाए? जिला प्रशासन सफाई दे रहा है कि गाड़ियों से जो ईवीएम मिले, वो खाली थे. चुनाव अधिकारियों को रिजर्व के तौर पर इसे दिया गया था. लेकिन, सवाल इस बात का है कि चुनाव बीतने के तत्काल बाद इन्हें स्ट्रॉन्ग रूम तक क्यों नहीं पहुँचाया गया? जबकि 19 मई को मतदान हुआ और रिर्जव मशीनों को 20 मई की रात में स्ट्रांग रूम तक पहुँचाया गया. ईवीएम रिजर्व थे या भरे, ये तो चुनाव अधिकारी जाने, लेकिन इस घटना ने एक नई बहस और शक को जन्म तो जरूर दे दिया है.

दूसरी बात कि जिला प्रशासन इस घटना को भले ही लापरवाही बताकर अपनी गर्दन बचाना चाहता है. लेकिन, बीजेपी के विरोधियों को अब चुनाव आयोग पर एतबार नहीं है. बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम पहले से ही कहते आ रहे हैं कि ‘‘चुनाव आयोग चोर है और चोरों का सरदार भी है’’ यही नहीं वामन मेश्राम तो चुनाव आयोग को इतना तक कह दिया है कि चुनाव आयोग सरकार के नेतृत्व में ईवीएम में घोटाला करवा रहा है. अगर चुनाव आयोग ईवीएम मशीन में वीवीपीएटी मशीन लगाने के लिए मजबूर हुआ है तो इसका पूरा श्रेय वामन मेश्राम को ही जाता है. क्योंकि वामन मेश्राम लोकसभा 2014 के बाद से लगातार सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम और चुनाव आयोग के खिलाफ लड़ते आ रहे हैं. वामन मेश्राम कई सालों से लगातार कहते आ रहे हैं कि ईवीएम में घोटाला हो रहा है और ईवीएम में घोटाला करके ही 2004-2009 में कांग्रेस और 2014-2019 में बीजेपी केन्द्र की सरकार बनी है. उनका यह भी दावा है कि इस घोटाले में चुनाव आयोग शामिल है. 

अभी हाल ही में वामन मेश्राम ईवीएम के खिलाफ कई बार राष्ट्रव्यापी जेल भरो आंदोलन और भारत बंद कर चुके हैं और 23 मई को फिर से अनिश्चितकाल के लिए भारत बंद करने का ऐलान किया है. इसके अलावा चुनाव आयोग द्वारा रूल 56-डी, 56-सी और 49-एम को जेलभरो आंदोलन के दौरान ही जेल में जलाया था और पूरे देश में 15 मई को आयोग के रूल को जलाने का आदेश दिया और बड़े पैमाने पर देशभर में जलाया गया था. बता दें कि वामन मेश्राम चुनाव आयोग और ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगातार केस लड़ रहे हैं. वामन मेश्राम का कहना है कि ईवीएम से कभी भी मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकता है. अगर ईवीएम में वीवीपीएटी मशीन लगा भी दिया जाय तो भी मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकता है. 

उनका यह मानना है कि एक शर्त पर मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव हो सकता है जब वीवीपीएटी से निकलने वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती होगी. लेकिन, चुनाव आयोग ऐसा नहीं चाहता है. चुनाव आयोग चाहता है कि वीवीपीएटी से निकलने वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती होनी चाहिए, इसकी कोई मांग भी न करे. इसलिए ही कांग्रेस, बीजेपी और चुनाव आयोग मिलकर जनप्रतिनिधी कानून में संशोधन किया और रूल 56-डी, 56-सी और 49-एम बनाया कि वीवीपीएटी से निकलने वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती करने की मांग वही पार्टियाँ कर सकती हैं जो दूसरे नंबर पर होंगी. इस तरह से चुनाव आयोग, सरकार और विपक्ष का दावा करने वाली कांग्रेस षड्यंत्र करके न केवल देश की जनता के वोट के अधिकार को खत्म कर रहे हैं, बल्कि संविधान के विरोध में जाकर लोकतंत्र की हत्या भी कर रहे हैं.

इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मौजूदा सरकार की शह पर जिला प्रशासन ईवीएम बदलना चाहता है. वैसे यह बात उक्त वाकयों के बाद सच ही साबित होता है. चुनाव जीतने के लिए बीजेपी हर स्तर पर उतर चुकी है. पहले चंदौली में ईवीएम से भरी दो संदिग्ध गाड़ियाँ मिलीं और अब गाजीपुर में ये कोशिश की जा रही है. चुनाव में संभावित हार देख बीजेपी अब ईवीएम बदलने की फिराक में है. लेकिन, हम उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे. 

मजेदार बात यह है कि चुनाव आयोग नियम बनाया है कि वोटिंग मशीन पूरी सुरक्षा के साथ स्ट्रॉन्ग रूम तक पहुँचाई जाए. मतगणना तक चौबीस घंटे ईवीएम की निगरानी होनी चाहिए. स्ट्रॉन्ग रूम की सीलिंग के वक्त राज्य और केंद्र की मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के नुमाइंदे मौजूद रहेंगे. स्ट्रॉन्ग रूम डबल लॉक सिस्टम वाला होना चाहिए, जिसका सिर्फ एक एंट्री प्वाइंट हो. स्ट्रॉन्ग रूम में सीसीटीवी कैमरा और बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके बाद भी चुनाव आयोग गंदी हरकत करने से बाज नहीं आया और मतदान खत्म होने के दूसरे दिन वो भी रात में अनयूज्ड रिर्जव ईवीएम मशीन को स्ट्रॉन्ग रूम में पहुँचाया जा रहा है. क्या खुद चुनाव आयोग अपने ही कानून का सही तरीके से पालन कर रहा है? इससे तो यही साबित होता है कि सरकार के दबाव में आकर ईवीएम को बदलने की ही कोशिश की जा रही है. क्योंकि रविवार की शाम एग्जिट पोल के नतीजे आएं और इसके बाद अगले दिन ईवीएम से जुड़ी घटनाएं एक के बाद एक सामने आने लगीं. यह इस बात का साक्ष्य है कि मतगणना के पहले ईवीएम बदलकर आंकड़ों में हेरफेर करके बीजेपी को जीताया जा सके.

 लोकसभा चुनाव को करीब से देखने वाले बता रहे हैं कि पहले और दूसरे चरण के चुनाव के बाद राष्ट्रवाद का तथाकथित रंग फीका पड़ने लगा. दूसरे शब्दों में कहे तो राजनीतिक बिसात पर बीजेपी का राष्ट्रवाद ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया. इस बीच बीजेपी की ओर से यूपी में मोदी लहर बनाने की भरपूर कोशिश हुई, लेकिन नाकामी हाथ लगी. जनता के बीच मोदी सबसे विश्वसनीय चेहरा जरूर बने थे, लेकिन उन्हें लेकर लोगों का क्रेज 2014 जैसा नहीं रहा. बीजेपी की रैलियों से भी इसकी झलक देखने को मिलती रही. ऐसे में एग्जिट पोल के नतीजे किसी के गले नहीं उतर रहे हैं. लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि जिस गठबंधन ने बीजेपी की नींद उड़ा दी, उसे एग्जिट पोल रिपोर्ट में वोटरों ने कैसे खारिज कर दिया? यदि सभी एग्जिट पोल्स पर गौर करें तो मीडिया में केवल बीजेपी की हवा बनायी जा रही है. असल में बीजेपी को कुल 169-177 सीट से ज्यादा एक भी सीट नहीं मिलने वाली है. परन्तु, दलाल और मोदी मीडिया देश की जनता को भ्रम में इसलिए रखना चाहती है. क्योंकि इसी भ्रम की आड़ में बीजेपी आसानी से ईवीएम को बदलकर सीटों की संख्या को बढ़ा सके और एग्जिट पोल्स की बातों को सच साबित कर सके.

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