राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
कांग्रेस ने यूपी में गठबंधन को दिया धोखा
बीजेपी को जीताने के लिए कांग्रेस कर रही थी काम
यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के साथ बीजेपी ने तो धोखा किया ही, कांग्रेस भी धोखा करने से बाज नहीं आयी. इस बात का अंदाजा इस चुनाव में सभी को लग गया होगा. सपा-बसपा ने कांग्रेस पर भरोसा करके अमेठी और रायबरेली में यह सोचकर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा कि यूपी में कांग्रेस, बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन का मदद करेगी. लेकिन, वही कांग्रेस गठबंधन को हराने के लिए मुख्य भूमिका निभाई और बीजेपी को जीताने के लिए जानबूझकर अमेठी की सीट हार गयी. अगर लोग ऐसा सोचते हैं कि अमेठी की सीट हारने से कांग्रेस का नुकसान हुआ तो यह केवल भ्रम है। इससे कांग्रेस को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ा है.
गारैतलब है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस एक दर्जन से अधिक सीटों पर गठबंधन की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि इसके पीछे बताया जा रहा है कि यदि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल होती तो ये चारों पार्टियाँ मिलकर 32 सीटें जीत सकती थीं. लेकिन, यह केवल कहने के लिए है. असल में पूर्व प्लानिंग के अनुसार बीजेपी को जीताने के लिए खुद कांग्रेस उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में चुनाव हारना चाहती थी.
अगर केवल उत्तर प्रदेश की बात करें तो सुल्तानपुर में मेनका गांधी ने 44.85 प्रतिशत वोट पाकर बसपा के सोनू सिंह को 1.34 प्रतिशत वोटों के अंतर से हरा दिया. जबकि, कांग्रेस के संजय सिंह को 4.16 प्रतिशत वोट मिले जो भाजपा के जीत के अंतर से ज्यादा हैं. इसी तरह धौरहरा में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को 1.61 लाख वोट मिले. वे तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उनके वोटों ने बसपा के अरशद सिद्दीकी की 1.5 लाख वोटों से हार तय कर दी. यहाँ से भाजपा की रेखा वर्मा 5.09 लाख वोट पाकर जीत गयी. ठीक यही कहानी बदायूं, बलिया, बांदा, बाराबंकी, बस्ती, भदोही, चंदौली, संत कबीरनगर, प्रतापगढ, मेरठ और कौशांबी जैसी सीटों पर हुआ है.
यही नहीं अमेठी और रायबरेली की बात करें तो प्लान के अनुसार राहुल के लिए अमेठी हारना जरूरी था, इसलिए राहुल गाँधी स्मृति ईरानी को जीताने के लिए जानबूझकर अमेठी की सीट हार गये. राहुल गाँधी को इस बात की बिल्कुल ही चिंता नहीं थी कि अमेठी उनके लिए महत्वपूर्ण है. क्योंकि राहुल वायनाड से जीत रहे थे, यह बात उनको को पहले से ही पता था. वहीं कांग्रेस रायबरेली की सीट क्यों नहीं हारी? क्योंकि वहाँ सोनिया गाँधी को बीजेपी जीताना चाहती थी, इसलिए सोनिया को जीताने के लिए बीजेपी ने लल्लूपंजू उम्मीदवार उतारी थी. कुल मिलाकर सच्चाई यही है कि कांग्रेस यूपी में सपा-बसपा को कमजोर और बीजेपी को मजबूत करने के लिए पहले से ही काम रही थी. यह भी चौंकाने वाली बात है कि कांगेस, बीजेपी को जीताने के लिए ही दिल्ली उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में कांग्रेस न तो बड़ी रैलियाँ की, और नहीं बीजेपी के खिलाफ दमदार उम्मीदवार ही उतारी थी, अगर उम्मीदवार उतारी भी थी तो लल्लूपंजू. यही कारण है कि कांग्रेस, प्रियंका गाँधी को मोदी के खिलाफ बनारस में उम्मीदवार नहीं बनाया था.
अंत में मैं यही कहना चाहता हूं कि सपा-बसपा सहित मूलनिवासी बहुजन समाज के तमाम पाटियां और संगठनों को वामन मेश्राम का पूरजोर समर्थन करना चाहिए और उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में पूरे शक्ति के साथ शामिल होकर न केवल बीजेपी, बल्कि कांग्रेस को भी सत्ता से उखाड़ फेंके और ब्राह्मणवाद को भी मिट्टी में मिला दें.....
वक्त की यही पुकार है.....।
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