सोमवार, 6 मई 2019

पढा-लिखा होना और जागृत होना दोनो में अंतर है


पढा-लिखा होना और जागृत होना दोनो में अंतर है। किताबों को पढ लेने से या डिग्रियां हासिल कर लेने से कोई जागृत नहीं कहा जा सकता। हर शिक्षित व्यक्ति जागृत ही हो ऐसा नहीं है।

“जागृति का प्रथम सिद्धांत है- अपने दोस्त की पहचान होना।

“जागृति का दूसरा सिद्धांत है- अपने दुश्मन की पहचान होना।

“जागृति का तीसरा सिद्धांत है- अपनी ताकत और कमजोरी मालूम होना।

“जागृति का चौथा सिद्धांत है- दुश्मन की ताकत और कमजोरी मालूम होना।

और “जागृति का पांचवां सिद्धांत है- अपने महापुरुषों का इतिहास मालूम होना।

यह पांच बातें अगर आपको मालूम है, और आप अनपढ़ भी हो, फिर भी आप जागृत कहे जा सकते हो। अगर आप को ये पांच बातें नहीं मालूम है, और आप शिक्षित भी हो, फिर भी आप जागृत नहीं हो। आप डॉक्टर, वकील, इंजिनियर, प्रोफेसर, प्च्ै, स।ै, हो सकते होय मगर आप जागृत नहीं कहे जा सकते। समाज उत्थान के लिये शिक्षा के साथ साथ सामाजिक जागृति बहुत जरूरी है।

 हमारे पढे लिखे अधिकारी, कर्मचारी, च्ी.क् ीवसकमत उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को हमारा सही इतिहास नहीं पता। “पता नहीं होना यह बुरी बात नहीं है।” परन्तु जब पता चल जाये कि मेने सब कुछ पढा जो लोगों नें मुझे पढाया परन्तु मुझे मेरे महापुरुषों का इतिहास नहीं पता। हमारे महापुरुषों के जीवन संघर्ष और बलिदान, जिसकी वजह से हमें शिक्षा लेने का अधिकार, शिक्षा देने का अधिकार, सम्पत्ति रखने का अधिकार, शस्त्र धारण का अधिकार मिला। 

अगर यह जानकारी पता चल जाये उसके बाद भी हमारा आदमी सिर्फ खाने-पीनें, बीवी-बच्चों को पालने, घर-गृहस्थी जमाने, सम्पत्ति इकट्ठा करना ही जीवन का उदैश्य रखता है ।तो तुम्हारा तुम्हारे बच्चों का तुम्हारे जीवन का भविष्य सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे समाज का दुश्मन ही तय करेगा। हो सकता है कि तुम बच जाओ लेकीन तुम्हारी आनेवाली पीढियों कि गुलामी के जिम्मेदार तुम खुद होगें ।

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